Tuesday, September 28, 2010

अयोध्या:फैसले की घड़ी,

राम जन्मभूमि विवाद की जड़ में सेक्युलरिस्टों के दोहरे मापदंड देख रहे हैं बलबीर पुंज

सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसएच कपाडि़या की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ आज इस बात का फैसला करने वाली है कि अयोध्या में विवादित स्थल के मालिकाना हक पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ अपना निर्णय सुनाए या नहीं। 60 साल पुराने रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक विवाद पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय 24 सितंबर को आना था, परंतु शीर्ष अदालत ने सेवानिवृत्त नौकरशाह रमेशचंद्र त्रिपाठी की याचिका के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर गत गुरुवार को रोक लगा दी थी। इस याचिका में आपसी बातचीत के जरिए मसले का हल निकालने की संभावनाएं तलाशने के मकसद से अदालती फैसला टालने की मांग की गई थी। स्वतंत्र भारत में रामजन्मभूमि विवाद की जड़ में सेक्युलरिस्टों के दोहरे मापदंड हैं, जो वोट बैंक की राजनीति के कारण मुस्लिम समाज को इस देश की संस्कृति से काटने का निरंतर प्रयास करते हैं। सेक्युलरिस्टों के दोहरे मापदंड का नवीनतम उदाहरण विगत 15 तारीख के समाचारपत्रों में देखने का मिला, जिसमें मजहबी भावनाओं के सार्वजनिक प्रदर्शन को सांप्रदायिकता मानने वाले कम्युनिस्टों के प्रतिनिधि सीताराम येचुरी और गुरुदास दासगुप्ता को हजरतबल दरगाह में इबादत करते दिखाया गया था। क्या कभी वैदिक संस्कृति और बौद्ध मत के केंद्र रहे कश्मीर की पहचान अब केवल हजरतबल दरगाह मात्र है? श्रीनगर के शंकराचार्य मंदिर, खीर भवानी, जम्मू के रघुनाथ मंदिर और कटरा के वैष्णो देवी मंदिर जम्मू-कश्मीर की संस्कृति और इतिहास के प्रतिबिंब क्यों नहीं हैं? इस देश का साधारण मुसलमान रामजन्म स्थान पर भव्य मंदिर निर्माण के विरोध में खड़ा नहीं होता, यदि सेक्युलरिस्ट उन्हें भड़काने का काम नहीं करते। कश्मीर में धारा 370 लगाकर उसे विशिष्टता प्रदान की गई, क्योंकि वह मुस्लिम बहुल था। कश्मीर को दी जाने वाली सहायता किसी भी अन्य राज्य की अपेक्षा दस गुनी अधिक है। क्यों? अन्य मतावलंबियों को तीर्थयात्रा के लिए सरकार कोई अनुदान नहीं देती, किंतु मुसलमानों के हज के लिए प्रतिवर्ष आठ सौ करोड़ रुपये अनुदान एक सेक्युलर देश द्वारा क्यों? यदि शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को संसद निरस्त कर सकती है तो ऐसा उपक्रम रामलला मंदिर निर्माण के लिए क्यों नहीं हो सकता? यदि केरल की विधानसभा एक घोषित आतंकवादी-अब्दुल नासेर मदनी (जिसके सिर पर मजहबी जुनून में दर्जनों हत्याओं का आरोप है) की रिहाई के लिए होली की छुट्टी वाले दिन विशेष सत्र बुलाकर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर सकती है तो भारतीय संसद अयोध्या में रामलला मंदिर निर्माण के लिए प्रस्ताव पारित क्यों नहीं कर सकती? सवाल यह भी है कि यदि कुछ हिंदुओं के हिंसक घटनाओं में शामिल होने के आरोप से गृहमंत्री चिदंबरम के अनुसार आतंकवाद का रंग भगवा हो सकता है तो कश्मीर और अन्य भागों में घटने वाली हिंसा व अन्य राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का रंग कौन-सा है? क्या यह सच नहीं है कि देश में सेक्युलरवाद के स्वयंभू पुरोधा वामपंथियों ने देश को विभाजित कर एक मजहबी राष्ट्र-पाकिस्तान के निर्माण में दाई की भूमिका निभाई थी? और तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व ने भी इस पाप में सक्रिय सहयोग दिया था? मुसलमानों की मजहबी भावनाओं का सम्मान करते हुए उन्हें यदि पूरा देश दिया जा सकता है तो हिंदुओं को उसी आधार पर रामलला का मंदिर बनाने के लिए एक छोटा सा टुकड़ा देने में इतनी अड़चन क्यों? मैं नहीं जानता कि अदालत का फैसला क्या होगा, परंतु जो विवाद पिछले 483 सालों से अनेक युद्धों और वार्ताओं के माध्यम से नहीं सुलझ सका उसका निदान कुछ दिनों या सप्ताहों में कैसे हो सकता है? 1527 में बाबर के आदेश पर अयोध्या के रामजन्मभूमि मंदिर को मीर बाकी ने ध्वस्त किया था। लखनऊ गजेटियर के अंक 38, पृष्ठ 34 में उल्लेख है, मंदिर को तोड़ते वक्त कई दिनों तक युद्ध चलता रहा। मंदिर पर गोले दागे गए, तब वह गिरा। रामजन्म भूमि मुक्ति के लिए अनेक युद्ध हुए, जिनमें असंख्य रामभक्त शहीद हुए। 1885 में महंत रघुबर दास ने अदालत से मंदिर निर्माण करने की स्वीकृति मांगी। इस अपील को अदालत ने निरस्त कर दिया। एक तुर्क-उजबेकी आक्रांता के नाम पर खड़े उस ढांचे में 1934 के बाद से कभी नमाज नहीं पढ़ी गई। वहीं 1949 से वहां रामलला की पूजा होती आ रही है। 6 दिसंबर, 1992 का दिन भारतीय इतिहास में सदैव उल्लेखनीय रहेगा। शायद पहली बार इस्लामी आक्रांताओं की तर्ज पर वृहद हिंदू समाज ने एक उपासना स्थल को ध्वस्त कर दिया। इस्लामी आक्रांताओं ने हिंदुओं के तीस हजार मंदिर जमींदोज किए, करीब तीन हजार मंदिरों के ध्वंसावशेषों पर मस्जिदें खड़ी कीं। हिंदू समाज ने उस बर्बरता को क्षमा कर दिया। अयोध्या, काशी और मथुरा को लेकर विवाद है तो उसका कारण यह है कि ये तीनों स्थान हिंदुओं के आराध्य देवों से प्रत्यक्ष जुड़े हैं। इन स्थानों पर जो मंदिर खड़े थे उन्हें आधा ध्वस्त कर उनके ऊपर मस्जिदें खड़ी की गईं। ऐसा इस देश के मूल निवासियों को विदेशियों द्वारा अपमानित करने के लिए किया गया। प्रश्न एक मंदिर या मस्जिद के निर्माण का नहीं है। मैं लाहौर गया था और लाहौर में विभाजन से पूर्व पचासों ऐतिहासिक महत्व वाले प्राचीन मंदिर थे। आज उनके अवशेष भी नहीं हैं। इसके विपरीत भारत की सनातनी संस्कृति के कारण आजादी के बाद न केवल हजारों मस्जिदों का निर्माण हुआ, बल्कि पुरानी मस्जिदों का जीर्णोद्धार भी हुआ। यह बहुसंख्यक हिंदू समाज के सक्रिय सहयोग से ही संभव हुआ है। अदालत के आदेश पर विवादित स्थल पर अब तक जो खुदाई हुई है, राडार सर्वेक्षण हुए हैं उनसे विवादित स्थल पर भव्य मंदिर होने के प्रमाण मिले हैं। बाबरी मस्जिद के ध्वंसावशेषों से प्राप्त 265 शिलाओं में से एक शिला में संस्कृत में यह उत्कीर्ण है कि दशानन को हराने वाले विष्णुहरि (श्रीराम) के सोने के शिखर वाले इस मंदिर का निर्माण गोविंद चंद्र गढ़वाल (1114-1154 ई.) द्वारा कराया गया। खुदाई में दीवारों पर लगे नक्काशीदार पत्थर, हिंदू शिल्पशैली के खंभे और शिव मंदिर मिले हैं। अयोध्या में रामलला के भव्य मंदिर का निर्माण सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर भारत सरकार के सहयोग से क्यों नहीं हो सकता? गजनी से लेकर कई अन्य इस्लामी आक्रांताओं ने कई बार सोमनाथ मंदिर का विध्वंस किया। स्वतंत्रता के बाद पंडित नेहरू के विरोध के बावजूद सरदार पटेल की पहल पर इसका भव्य वर्तमान स्वरूप खड़ा हुआ। बहुसंख्यकों व अल्पसंख्यकों के बीच सौहार्द्रपूर्ण वातावरण सभ्य समाज की जरूरत है। रामजन्म स्थल के लिए अनुकूल माहौल बनाकर मुसलमान क्या इस देश की संस्कृति से जुड़े होने का संकेत देंगे?